नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को धनतेरस के अगले दिन अर्थात छोटी दीपावली (Chhoti Diwali) को मनाया जाता है, जो कि इस वर्ष 3 नवम्बर 2021, बुधवार के दिन मनाया जाएगा, जिसे रूप चौदस (Roop Chaudas), काली चौदस (Kali Chaudas), नरक चौदस (Narak Chaudas), नरका पूजा (Naraka Puja) या रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdashi) भी कहते हैं। आइये जानते हैं विस्तार से नरक चतुर्दशी से जुड़े हुए सभी गूढ़ रहस्यों को शास्त्रों से प्रमाण के आधार पर जिन्हें पाठकगण बहुत लंबे समय से जानने के इच्छुक थे।
Narak Chaturdashi 2021 (नरक चतुर्दशी): सम्बंधित मुख्य बिंदु
- नरक चतुर्दशी का पर्व 3 नवंबर 2021, बुधवार को है।
- नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी, नरक चौदस, रूप चौदस, नरका पूजा और काली चौदस भी कहा जाता है।
- मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है, परन्तु शास्त्रों में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है
- शास्त्रों में प्रमाण है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी के साधक की नहीं होती है कभी भी अकाल म्रत्यु
- पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी हैं सर्व के रक्षक व पूर्ण मुक्तिदाता
- तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी हैं वर्तमान समय में शास्त्र प्रमाणित सतभक्ति प्रदान करने वाले पूर्ण संत
कब है नरक चतुर्दशी या रूप चौदस? (Narak Chaturdashi 2021, Date)
दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी का पर्व मानाया जाता है। नरक चतुर्दशी का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 03 नवम्बर 2021, बुधवार के दिन मनाया जाएगा, लेकिन इस बार पंचांग भेद होने के कारण कई स्थानों पर 03 नवंबर तो कई स्थानों पर 04 नवंबर को यानी दिवाली वाले दिन भी नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी, क्योंकि 03 नवंबर को चतुर्दशी तिथि का ह्रास हो रहा है।
नरक चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त (Narak Chaturdashi shubh Muhurat)
3 नवंबर के दिन त्रयोदशी तिथि सुबह 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगी। इसके बाद चतुर्दशी तिथि प्रारंभ होकर 4 नवंबर 2021 प्रात: 06 बजकर 03 मिनट तक रहेगी। इसीलिए अभ्यंग स्नान समय 4 नवंबर सुबह 6 बजकर 6 मिनट से 6 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। वास्तविक रुप से देखा जाए तो परमात्मा को याद करने का कोई विशेष मुहूर्त अर्थात समय नहीं होता है अपितु उस पूर्ण परमात्मा को तो हर समय याद करके अपने बीतते प्रत्येक पल को विशेष बनाना चाहिए।
नरक चतुर्दशी का महत्व (Significance of Narak Chaturdashi)
लोकवेद पर आधारित मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय यमराज की पूजा करने से नरक की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है, परन्तु शास्त्रों में इस बात का कोई प्रमाण नही है वास्तविक रूप से तो इस पर्व का कोई महत्व नहीं है क्योंकि जिस साधना को करने की अनुमति पवित्र सद्ग्रन्थ नहीं देते हों तो उसका फिर महत्व ही क्या है वह तो महत्वहीन है। शास्त्रों के अनुसार तो वह परमात्मा कोई और है जिसकी साधना करने से यथा समय सर्व लाभ सम्भव हैं। वेद भी इस बात की गवाही देते हैं कि पूर्ण परमात्मा के साधक की कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है अपितु पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं वह पूर्ण परमात्मा कौन है?
वह पूर्ण परमात्मा कौन है, उसका नाम क्या है?
योथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्।।
यः-अथर्वाणम्-पित्तरम्-देवबन्धुम्-बहस्पतिम्-नमसा-अव-च- गच्छात्-त्वम्- विश्वेषाम्-जनिता-यथा-सः-कविर्देवः-न-दभायत्-स्वधावान्
पवित्र अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
के इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है। जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी (गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में भी प्रमाण है) जगत गुरु, आत्माधार, जो पूर्ण मुक्त होकर सतलोक गए हैं उनको सतलोक ले जाने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, काल (ब्रह्म) की तरह धोखा न देने वाला ज्यों का त्यों वह स्वयं कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है। यही परमेश्वर सर्व ब्रह्मण्डों व प्राणियों को अपनी शब्द शक्ति से उत्पन्न करने के कारण (जनिता) माता भी कहलाता है तथा (पित्तरम्) पिता तथा (बन्धु) भाई भी वास्तव में यही है तथा (देव) परमेश्वर भी यही है। इसलिए इसी कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की स्तुति किया करते हैं। त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्रविणंम त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम् देव देव। इसी परमेश्वर की महिमा का पवित्र ऋग्वेद मण्डल नं. 1 सूक्त नं. 24 में विस्तृत विवरण है।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी के साधक की नहीं होती है अकाल मृत्यु
सतभक्ति करने वाले की पूर्ण परमात्मा आयु बढ़ा देते हैं
ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 161 मंत्र 2, 5, सुक्त 162 मंत्र 5, सुक्त 163 मंत्र 1-3 में बताया है कि सतभक्ति करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होती जो मर्यादा में रहकर साधना करता है। वेद में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मरे हुए साधक को भी जीवित करके 100 वर्ष तक की सुखमय आयु प्रदान करता है।
पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जी हैं सर्व के रक्षक
शास्त्रों के आधार पर साधना करने वाले साधकों की सर्व विपत्तियों से रक्षा करने वाले व पूर्ण मोक्ष प्रदान करने वाले पूर्ण परमेश्वर कविर्देव जी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है, क्योंकि वेद इस बात की गवाही देते हैं कि सर्वशक्तिमान परमात्मा कबीर साहेब जी अपने साधक के सर्व दुःखों का हरण करने वाले हैं व अपने साधक को मृत्यु से बचाकर शत (100) वर्ष की सुखमय आयु प्रदान करते हैं।
नरक चतुर्दशी पर्व से जुड़ी लोकवेद पर आधारित कथाएं (Narak Chaturdashi Stories)
- नरक चतुर्दशी– छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भौमासुर राक्षस (जिसे नरकासुर भी कहा जाता है) का आतंक बहुत बढ़ गया तो भगवान कृष्ण ने देवों, ऋषि-मुनियों और मनुष्यों की रक्षा करने हेतु उसका अंत कर दिया। इसी उपलक्ष्य में कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है।
- रूप चौदस – रूप चतुर्दशी से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है मान्यता है कि प्राचीन समय में पहले हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे। कठिन तपस्या के कारण उनके शरीर की दशा बहुत वीभत्स हो गई थी। इसके बाद उन्होंने नारद मुनि के वचन अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अराधना की जिससे उन्हें पुनः स्वस्थ और रुपवान शरीर की प्राप्ति हुई। परन्तु गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में व्रत करने का मना किया हुआ है। इसलिये लोकवेद पर आधारित कथा के आधार पर साधक समाज शास्त्र विरुद्ध साधना करने पर विचार न करे, क्योंकि शास्त्र विरुद्ध साधना से सिर्फ मूल्यवान समय की बर्बादी होगी।
- काली चौदस – कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात्रि में मां काली की पूजा का प्रावधान भी है। बंगाल में इस दिन को काली जयंती के नाम से मनाया जाता है इसलिए इस दिन को काली चौदस भी कहा जाता है।
- यम दीया – कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को यम के निमित्त दीपक प्रज्वलित किया जाता है। इसलिए आम बोल-चाल की भाषा में इस दिन को यम दीया के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन यम के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। वास्तविक रूप से ऐसा शास्त्रों में कोई प्रमाण नहीं है। शास्त्रों में तो यह बताया गया है कि पूर्ण परमात्मा कविर्देव जी की साधना से साधक की कभी भी अकाल मृत्यु नही होती है अन्य किसी की साधना से यह लाभ की आशा करना भी व्यर्थ है, क्योंकि समर्थ परमात्मा ही सर्व देने में सक्षम है, अन्य कोई नहीं।
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साधक समाज से निवेदन है कि लोकवेद पर आधरित इन कथाओं को आधार मानकर साधना करने से कोई भी लाभ नहीं होगा, क्योंकि यह साधना विधि पूर्णतः शास्त्र विरुद्ध है और शास्त्र विरुद्ध साधना से कोई लाभ नहीं है यदि यथा समय सर्व लाभ व पूर्ण मोक्ष की आकांक्षा है तो संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त करें और इस मूल्यवान मनुष्य जीवन को सार्थक करें।
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