HomeBlogsमहा शिवरात्रि 2019

महा शिवरात्रि 2019

Date:

इस महाशिवरात्रि पर जानें शिव के लिंग और पार्वती के लिंगी की पूजा का भेद!

सर्व हिंदू समाज लोक कथाओं पर आरूढ़ होकर भक्ति साधना करने में व्यस्त है। भक्ति एक परमात्मा को ईष्ट मानकर वेदों, शास्त्रों पर आधारित रह कर मर्यादा में करनी चाहिए। पर देखने में आ रहा है कि संपूर्ण मानव समाज में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की मनमानी भक्ति करने के असंख्य तरीके अपनाए जा रहे हैं जो कि वेद, गीता और अन्य सदग्रंथों में कहीं वर्णित नहीं है और न ही इनसे मेल खाते हैं।
शिवरात्रि का व्रत लोक प्रचलन अनुसार!

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महा शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। लोक मान्यतानुसार इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। प्रत्येक वर्ष में आने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है जो कि इस वर्ष 4 मार्च को पूरे भारतवर्ष में मनाई जाएगी। शिवरात्रि पर विशेष रूप से शिवलिंग की पूजा की जाती है। (इस लेख में आगे पढ़ेंगे शिवलिंग का भेद क्या है।)

प्रश्न: शिव जी कौन हैं?
उत्तर: शिव जी काल और दुर्गा की तीसरी संतान हैं।

प्रश्न: शिव की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर: दुर्गा (प्रकृति देवी) और काल (ब्रह्म) के पति-पत्नी व्यवहार से तीनों पुत्रों रजगुण युक्त श्री ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त श्री विष्णु जी, तमगुण युक्त श्री शिव जी को उत्पन्न करती है।

“पवित्र महा शिवरात्रि 2019 पर जानिए शिव महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण”

काल ब्रह्म व दुर्गा से विष्णु, ब्रह्मा व शिव की उत्पत्ति हुई इसी का प्रमाण पवित्र श्री शिव पुराण गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादकर्ता श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, इसके अध्याय 6 रूद्र संहिता, पृष्ठ नं. 100
जो मूर्ति रहित परब्रह्म है, उसी की मूर्ति भगवान सदाशिव है। इनके शरीर से एक शक्ति निकली, वह शक्ति अम्बिका, प्रकृति (दुर्गा), त्रिदेव जननी (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी को उत्पन्न करने वाली माता) कहलाई। जिसकी आठ भुजाएं हैं। वे जो सदाशिव (काल) हैं, उन्हें शिव, शंभू और महेश्वर भी कहते हैं। (पृष्ठ नं. 101 पर) वे अपने सारे अंगों में भस्म रमाये रहते हैं। उन काल रूपी ब्रह्म ने एक शिवलोक नामक क्षेत्र का निर्माण किया। फिर दोनों ने पति-पत्नी का व्यवहार किया जिससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ।

उसका नाम विष्णु रखा (पृष्ठ नं. 102)। फिर रूद्र संहिता अध्याय नं. 7 पृष्ठ नं. 103 पर ब्रह्मा जी ने कहा कि मेरी उत्पत्ति भी भगवान सदाशिव (ब्रह्म-काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) के संयोग से अर्थात् पति-पत्नी के व्यवहार से ही हुई। फिर मुझे बेहोश कर दिया। फिर रूद्र संहिता अध्याय नं. 9 पृष्ठ नं. 110 पर कहा है कि इस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र इन तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (काल-ब्रह्म) गुणातीत माने गए हैं।

यहाँ पर चार सिद्ध हुए अर्थात् सदाशिव (काल-ब्रह्म) व प्रकृति (दुर्गा) से ही ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव उत्पन्न हुए हैं। तीनों भगवानों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की माता जी श्री दुर्गा जी तथा पिता जी श्री ज्योति निरंजन (ब्रह्म) है। यही तीनों प्रभु रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, तमगुण-शिव जी हैं। ‘‘पवित्र श्रीमद्भगवत गीता जी” में सृष्टी रचना का प्रमाण अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 तक है। ब्रह्म (काल) कह रहा है कि प्रकृति (दुर्गा) तो मेरी पत्नी है, मैं ब्रह्म (काल) इसका पति हूँ। हम दोनों के संयोग से सर्व प्राणियों सहित तीनों गुणों (रजगुण – ब्रह्मा जी, सतगुण – विष्णु जी, तमगुण – शिवजी) की उत्पत्ति हुई है। मैं (ब्रह्म) सर्व प्राणियों का पिता हूँ तथा प्रकृति (दुर्गा) इनकी माता है। मैं इसके उदर में बीज स्थापना करता हूँ जिससे सर्व प्राणियों की उत्पत्ति होती है। प्रकृति (दुर्गा) से उत्पन्न तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) जीव को कर्म आधार से शरीर में बांधते हैं। यही प्रमाण अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16, 17 में भी है।

Maha shivratri: क्या आप जानते है कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?

शिव महापुराण {जिसके प्रकाशक हैं ‘‘खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र} भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
काल ब्रह्म ने जान-बूझकर शास्त्र विरूद्ध साधना बताई क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई शास्त्रों में वर्णित साधना करके इस का भोजन बनने से बच सके।

विद्यवेश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27.30 :- पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ। उनके मान को दूर करने के लिए उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया। तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया। उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। विद्यवेश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40.43 :- इससे मैं अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षणही मैं सगुण रूप हुआ हूँ। मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक है। लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा।

इस कारण हे पुत्रो! तुम नित्य इसकी अर्चना करना। यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है। यह विवरण श्री शिव महापुराण (खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित) से शब्दाशब्द लिखा है। काल ने अपने लिंग (गुप्तांग) की पूजा करने को कह दिया। पहले तो तेजोमय स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर शिव रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्री के गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्री की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही रखकर नित्य पूजा करना।

इसके पश्चात् यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। आप मंदिर में शिवलिंग को देखना। उसके चारों ओर स्त्री इन्द्री का आकार है जिसमें शिवलिंग प्रविष्ट दिखाई देता है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी। शिव पुराण भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता के पृष्ठ 11 पर अध्याय 5 श्लोक 27-30 में पढ़ा कि शिव ने जो तेजोमय स्तंभ खड़ा किया था। फिर उस स्तंभ को गुप्त करके पत्थर को अपने लिंग (गुप्तांग) का आकार दे दिया और बोला कि इसकी पूजा किया करो।

maha shivratri 2019 पर जानिए की शिवलिंग पूजा अंधश्रद्धा भक्ति है!

शिवलिंग की पूजा अंध श्रद्धावान लोग करते हैं जो शर्म की बात तो है ही, परंतु धर्म के विरूद्ध भी है क्योंकि यह गीता व वेद शास्त्रों में नहीं लिखी है। इसका खण्डन सूक्ष्मवेद में इस प्रकार किया है –
।। धरै शिव लिंगा बहु विधि रंगा, गाल बजावैं गहले। जे लिंग पूजें शिव साहिब मिले, तो पूजो क्यों ना खैले।। परमेश्वर कबीर जी ने समझाया है कि तत्वज्ञानहीन मूर्ति पूजक अपनी साधना को श्रेष्ठ बताने के लिए गहले यानि ढ़ीठ व्यक्ति गाल बजाते हैं यानि व्यर्थ की बातें बड़बड़ करते हैं जिनका कोई शास्त्र आधार नहीं होता। वे जनता को भ्रमित करने के लिए विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पत्थर के शिवलिंग रखकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।
कबीर जी ने कहा है कि मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि यदि शिव जी के लिंग को पूजने से शिव जी भगवान का लाभ लेना चाहते हो तो आप धोखे में हैं। यदि ऐसी बेशर्म साधना करनी है तो खागड़ के लिंग की पूजा कर लो जिससे गाय को गर्भ होता है। उससे अमृत दूध मिलता है। हल जोतने के लिए बैल व दूध पीने के लिए गाय उत्पन्न होती है जो प्रत्यक्ष लाभ दिखाई देता है। आपको पता है कि खागड़ के लिंग से कितना लाभ मिलता है। फिर भी उसकी पूजा नहीं कर सकते क्योंकि यह बेशर्मी का कार्य है।

शिवरात्रि पर जानिए की तमगुण शिवजी के उपासकों का चरित्र।

लंका के राजा रावण ने तमगुण शिव की भक्ति की थी। उसने अपनी शक्ति से 33 करोड़ देवी देवताओं को कैद कर रखा था। फिर देवी सीता का अपहरण कर लिया। इसका क्या हश्र हुआ, आप सब जानते हैं। तमगुण शिव का उपासक रावण राक्षस कहलाया, सर्वनाश हुआ। निंदा का पात्र बना। अन्य उदाहरण भस्मासुर ने भगवान शिव (तमोगुण) की भक्ति की थी। वह बारह वर्षों तक शिव जी के द्वार के सामने ऊपर को पैर नीचे को सिर (शीर्षासन) करके भक्ति तपस्या करता रहा। एक दिन पार्वती जी ने कहा हे महादेव! आप तो समर्थ हैं। आपका भक्त क्या माँगता है? इसे प्रदान करो प्रभु। भगवान शिव ने भस्मागिरी से पूछा बोलो भक्त क्या माँगना चाहते हो। मैं तुझ पर अति प्रसन्न हूँ। भस्मागिरी ने कहा कि पहले वचनबद्ध हो जाओ, तब माँगूंगा। भगवान शिव वचनबद्ध हो गए। तब भस्मागिरी ने कहा कि आपके पास जो भस्मकण्डा(भस्मकड़ा) है, वह मुझे प्रदान करो। शिव ने वह भस्मकण्डा भस्मागिरी को दे दिया।

कड़ा हाथ में आते ही भस्मागिरी ने कहा कि होजा शिवजी होशियार! तुम को भस्म करुँगा तथा पार्वती को पत्नी बनाउँगा। यह कहकर अभद्र ढ़ंग से हँसा तथा शिवजी को मारने के लिए उनकी ओर दौड़ा। भगवान शिव उस दुष्ट का उद्देश्य जानकर भाग निकले। पीछे-पीछे पुजारी आगे-आगे ईष्टदेव शिवजी (तमगुण) भागे जा रहे थे। विचार करें यदि शिव जी अविनाशी होते तो मृत्यु के भय से नहीं डरते। आप इनको अविनाशी समझ कर इनकी भक्ति करते हो। आप इन्हें अन्तर्यामी भी कहते हो। यदि भगवान शिव अन्तर्यामी होते तो पहले ही भस्मागिरी के मन के गन्दे विचार जान लेते। इससे सिद्ध हुआ कि ये तो अन्तर्यामी भी नहीं हैं।

जिस समय भगवान शिव जी आगे-आगे और भस्मागिरी पीछे-पीछे भागे जा रहे थे, उस समय भगवान शिव ने अपनी रक्षा के लिए परमेश्वर को पुकारा। (पांचवे वेद सूक्ष्म वेद के अनुसार शिवजी स्वयं पूर्ण परमात्मा के ध्यान में समाधि लगाए रहते हैं वे उन्हीं के दिए नाम मंत्र का जाप करते हैं।) उसी समय ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ ( पूर्ण परमात्मा) पार्वती का रुप बनाकर भस्मागिरी दुष्ट के सामने खड़े हो गए। तथा कहा हे भस्मागिरी! आ मेरे पास बैठ। भस्मागिरी को पता था कि अब शिवजी निकट स्थान पर नहीं रुकेंगे। भस्मागिरी तो पार्वती के लिए ही सर्व उपद्रव कर रहा था। पार्वती रुप में परमात्मा ने भस्मागिरी को गण्डहथ नाच नचाकर भस्म किया। तमोगुण शिव का पुजारी भस्मागिरी अपने गन्दे कर्म से भस्मासुर अर्थात् भस्मा राक्षस कहलाया।

परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि जो साधक भूलवश तीनों देवताओं रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, उनकी कभी मुक्ति नहीं हो सकती। यही प्रमाण श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तथा 20 से 23 में भी है। कहा है कि साधकों ने त्रिगुण यानि तीनों देवताओं (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) को कर्ता मानकर उनकी भक्ति करते हैं। अन्य किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हैं। जिनका ज्ञान हरा जा चुका है यानि जिनकी अटूट आस्था इन्हीं तीनों देवताओं पर लगी है, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए हैं, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म (बुरे कर्म) करने वाले मूर्ख हैं। गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि वे मेरी (काल ब्रह्म यानि ज्योति निरंजन की) भक्ति नहीं करते। उन देवताओं को मैंने कुछ शक्ति दे रखी है। परंतु इनकी पूजा करने वाले अल्पबुद्धियों (अज्ञानियों) की यह पूजा क्षणिक सुख देती है। स्वर्ग लोक को प्राप्त करके शीघ्र जन्म-मरण के चक्र में गिर जाते हैं।

maha shivratri 2019: तीनों गुणों के देवताओं की भी जन्म मृत्यु होती है।

1008 चतुर्युग का ब्रह्मा जी का दिन और इतनी ही रात्रि होती है, ऐसे 30 दिन-रात्रि का एक महीना तथा 12 महीनों का ब्रह्मा जी का एक वर्ष हुआ। ऐसे 100 (सौ) वर्ष की श्री ब्रह्मा जी की आयु है। श्री विष्णु जी की आयु श्री ब्रह्मा जी से 7 गुणा है। = 700 वर्ष। श्री शंकर जी की आयु श्री विष्णु जी से 7 गुणा अधिक = 4900 वर्ष। सदाशिव, महाकाल ब्रह्म (क्षर पुरूष) की आयु = 70 हजार शंकर की मृत्यु के पश्चात् एक ब्रह्म की मृत्यु होती है अर्थात् क्षर पुरूष की मृत्यु होती है।

पाठकजनों से नम्र निवेदन है कि पूर्ण लेख प्रमाणों पर आधारित है। नम्रता पूर्वक विचार करें व अपने विवेक का प्रयोग करें कि क्या जो साधना आप कर रहे हैं वह सही है भी या नहीं? जो ज्ञान पुराणों, गीता, वेदों में अंकित है, जिसको धर्मगुरु, ब्राह्मण नहीं जान सके, उस ज्ञान को कबीर साहेब के अवतार सतगुरु रामपाल जी महाराज जी ने ज्यों का त्यों वेदों, गीता, पुराणों, शास्त्रों में से प्रमाण सहित दिखाकर सरलता से समझा दिया है। सतगुरु रामपाल जी महाराज सर्वज्ञ परमात्मा, सच्चे सतगुरू और जगत गुरू हैं। तीनों देवताओं की भक्ति करने से कैसे लाभ मिलेगा इसका भेद भी सतगुरु रामपाल जी महाराज ही दे सकते हैं। सतगुरु रामपाल जी महाराज जी परमात्म ज्ञान के स्रोत हैं इनके सत्संग प्रवचन साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8:30 pm प्रसारित होते हैं एवं अवश्य पढ़िए पुस्तक “अंधश्रद्धा भक्ति खतरा ए जान।”

SA NEWS
SA NEWShttps://news.jagatgururampalji.org
SA News Channel is one of the most popular News channels on social media that provides Factual News updates. Tagline: Truth that you want to know
spot_img
spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related