October 10, 2025

Kedarnath Dham Kapat Opening on May 17, 2021: जानिए केदारनाथ धाम की स्थापना का रहस्य

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Kedarnath Dham Kapat Opening on May 17, 2021: मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि पंच केदारों में से सर्वाधिक श्रेष्ठ धाम केदारनाथ है। यहां शिवजी के पश्च भाग के दर्शन होते हैं, दूसरी ओर द्वितीय केदार मद्महेश्वर में नाभि के, तृतीय केदार तुंगनाथ में भुजा, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ में मुख और आखिरी पंचम केदार कल्पेश्वर में शिव जी की जटाओं के दर्शन होते हैं। इस महात्म्य  के कारण श्रद्धालु शिव भक्तों की इस धाम की दर्शन करने की इच्छा रहती है। पाठक यह भी जानेंगे कि शिवजी की पूजा और तीर्थ यात्रा से शास्त्रों के अनुसार कोई लाभ नहीं।    

Table of Contents

Kedarnath Dham Kapat Opening 2021 के मुख्य बिंदु

  • महाशिवरात्रि के दिन शिव भक्तों को खुशखबरी मिली है कि 17 मई 2021 को केदारनाथ धाम के कपाट खुलेंगे
  • रावल भीमाशंकर लिंग ने कपाट खोलने की निर्धारित तिथि की घोषणा की
  • 13 मई से 16 मई तक होंगी अपने निज धाम केदारनाथ जाने के लिए डोली यात्रा  
  • शिवजी की पूजा -अर्चना- साधना से मुक्ति संभव नहीं है
  • केवल पूर्ण संत रामपाल जी महाराज ही बता सकते है मोक्षदायिनी भक्ति विधि व पूर्ण परमात्मा के बारे में

Kedarnath Dham Kapat Opening 2021: केदारनाथ धाम के कपाट खोलने के लिए मुहूर्त किया गया निर्धारित

केदारनाथ धाम के कपाट 17 मई को मेष लग्न में ब्रह्म मुहूर्त में सुबह के पांच बजे खोलने का निर्णय लिया गया है। केदारनाथ धाम के कपाट छह माह तक खोले जाएंगे। यह निर्णय महाशिवरात्रि के दिन गुरुवार को ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग की मौजूदगी में आचार्यों द्वारा पंचांग गणना से निर्धारित किया गया है।

कैसे की गई केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की घोषणा

पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर में सुबह 10 बजे सभी आचार्यों यशोधर मैठाणी, स्वयंवर सेमवाल, मृत्युंजय हीरेमठ व नवीन मैठाणी द्वारा पंचांग गणना के अनुसार श्री केदारनाथ धाम के कपाट खोलने का दिन और समय लग्न अनुसार निश्चित किया गया है। इस अवसर पर देवस्थानम बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी बीडी सिंह, कार्याधिकारी एनपी जमलोकी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी राजकुमार नौटियाल, प्रशासनिक अधिकारी युद्धवीर सिंह पुष्पबाण, पुजारी शिव शंकर लिंग, वयोवृद्ध तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती, केदार सभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला, राजकुमार तिवारी, नगर पंचायत अध्यक्ष विजय राणा, पूर्व जिपं सदस्य संगीता नेगी, पूर्व प्रमुख लक्ष्मी प्रसाद भट्ट समेत बहुत से गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

Kedarnath Dham Kapat Opening 2021: केदारनाथ धाम के कपाट खोलने का निर्धारित किया गया क्रम  

यह जानना जरूरी है कि पंचांग गणना के अनुसार भगवान आशुतोष के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में ग्यारहवें केदारनाथ के कपाट 17 मई को खोले जाएंगे परंतु इससे पहले क्रमबद्ध तरीके से कई कार्यक्रम होंगे।  

  • 13 मई को ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में भगवान केदारनाथ जी के क्षेत्रपाल के रूप में आराध्य भैरवनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाएगी।
  • 14 मई 2021 को बाबा केदारनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से अपने धाम के लिए निकलेगी।
  • 15 मई को बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली फाटा से रामपुर, सोनप्रयाग से निकलती हुई गौरीकुंड में रात्रि विश्राम करेगी। 
  • 16 मई सुबह में बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली गौरीकुंड से निकलते हुए जंगल चट्टी, भीमबली, रामबाड़ा, लिनचोली, रुद्रा प्वाइंट होते हुए 17 किलोमीटर का सफर पूरा करके अपने धाम केदारनाथ पहुंचेगी।

Kedarnath Dham Kapat Opening 2021 पर अगले छह माह के लिए पुजारी हुए नियुक्त

बता दें कि 17 मई से शुरू होने जा रही केदारनाथ धाम आराध्य बाबा केदार की पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी बागेश लिंग छह माह तक संभालेंगे। देवस्थानम बोर्ड के कार्याधिकारी एनपी जमलोकी ने बताया कि यात्रा काल के लिए द्वितीय केदार मद्महेश्वर धाम में शिवलिंग, ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में टी-गंगाधर लिंग और विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी में शशिधर लिंग पूजा-अर्चना करेंगे। जबकि शिव शंकर लिंग को अतिरिक्त पुजारी के तौर पर रखा गया है.

Kedarnath Dham Kapat Opening 2021: 17 मई 2021 को ही खुलेंगे रुद्रनाथ मंदिर के कपाट

पंच केदारों में चतुर्थ केदार रुद्रनाथ के कपाट 17 मई को ब्रह्म मुहूर्त में भक्तों के लिए खुल जाएंगे। रुद्रनाथ मंदिर समिति की ओर से मंदिर के कपाट खुलने की तिथि निश्चित की। श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष व रुद्रनाथ-गोपीनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अनुसूया प्रसाद भट्ट ने बताया कि इस वर्ष रुद्रनाथ मंदिर के कपाट 17 मई को ब्रह्म मुहूर्त में खोले जाएंगे।

जानिए कैसे हुई केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) की स्थापना?

भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में केदारनाथ धाम स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य पाण्डवों के वंशज जनमेजय ने कराया था। इस मन्दिर के निर्माण कार्य को पत्थरों से कत्यूरी शैली में पूरा किया गया था।

यह भी पढ़ें: क्या Mahashivratri पर व्रत करने से मुक्ति संभव है? 

महाभारत में एक और वृतांत आता है कि पाँचों पाण्डव भाई युद्धिष्ठर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव अपने जीवन के अंतिम समय में हिमालय पर तपस्या कर रहे थे। सदाशिव (काल ब्रह्म) स्वयं दुधारू भैंस का रूप बनाकर उस क्षेत्र में घूमने लगा। भीम ने भैंस को देखा और दूध लेने के उद्देश्य से उसके पीछे दौड़ा तो आश्चर्य जनक तरीके से भैंस पृथ्वी के भीतर समाने लगी। भीम ने भैंस का पिछला भाग जो अभी पृथ्वी पर ही था उसे मजबूती से पकड़ लिया। देखते ही देखते वह भाग पत्थर का हो गया और बाहर ही रह गया, ऐसा कहते हैं कि वह भूभाग ही केदारनाथ कहलाया। उस भैंस के शरीर के दूसरे अंग जैसे आगे वाले पैर, पिछले वाले पैर आदि-आदि जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ-वहाँ पर अन्य केदार बने, इस प्रकार सात केदार हिमालय में बने हैं। भैंस का सिर वाला भाग नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में निकला उसे मंदिर बनाकर पशुपतिनाथ के नाम से पुकारा गया। 

सब मंदिर किसी न किसी कथा के साक्षी हैं। श्रद्धालु जनों को जानना चाहिए कि ऐसे स्थानों पर पूजा करना व्यर्थ है। सौ वर्ष पूर्व केदारनाथ धाम पर अत्यधिक वर्षा के कारण बहुत दलदल हो गई थी और वहां पर लगभग साठ (60) वर्ष तक कोई पूजा-आरती नहीं की गई। वर्तमान में ही अतिवृष्टि के कारण केदारनाथ गए श्रद्धालु मारे गए थे। शास्त्र विरुद्ध पूजा करने के कारण ऐसा होता है।

क्या तीर्थ यात्रा, शिव भक्ति से सुख और मोक्ष मिलेगा?  

पाठकगण आप केवल मान्यताओं के पीछे मत जाइए, जरा अपने वेदों – पुराणों को समझ लीजिए। हमें केवल पूर्ण परमात्मा की सद्भक्ति करने का अधिकार है न कि अपनी मनमर्जी से अन्य पूजाएं और साधनाएं। यह भी है कि बिना गुरु के वेदों पुराणों को पढ़ना और समझना व्यर्थ है। पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब द्वारा रचित सूक्ष्म वेद में लिखा है –

गुरु बिन वेद पढ़े जो प्राणी, समझे न सार रहे अज्ञानी।

वेद-कतेव झूठे न भाई, झूठे वो है जो इनको समझे नाही||

सृष्टि के रचयिता केवल पूर्ण ब्रह्म है जिनकी भक्ति ही जीवन का सार है

 पूर्ण परमात्मा ने इस संसार को बनाया है, माँ के गर्भ में भी हमारा पालन-पोषण किया है,  क्या उस परमात्मा की जगह हम अन्य देवी – देवताओं को सृष्टि रचयिता कह सकते है,  बिल्कुल नहीं। केवल पूर्ण परमात्मा ही सबका जनक है, उसी से सारे ब्रह्मांड का संचार है।

प्रमाण है पवित्र अथर्ववेद  के काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 1 में कि पवित्र वेदों में बोलने वाला ब्रह्म (काल) कह रहा है कि सनातन परमेश्वर ने स्वयं अनामी लोक से सत्यलोक में प्रकट होकर अपनी सूझ -बूझ से कपड़े की तरह बुन कर रचना करके ऊपर के सतलोक आदि को भिन्न -2 सीमा युक्त स्वप्रकाशित अजर – अमर अर्थात अविनाशी ठहराया तथा नीचे के परब्रह्म के सात संख ब्रह्मांड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्मांड व इनमें छोटी से छोटी रचना भी उसी परमात्मा ने अस्थाई की है।

पाठक स्वयं विचार करें कि शास्त्र अनुकूल भक्ति विधि क्या है?

जिस ईश्वर ने इस पूरे ब्रह्मांड की रचना की है उसकी साधना करनी चाहिए या उसके बनाए गए देवी – देवताओं की पूजा करनी चाहिए। यदि आपको बताएं कि श्रीमद्भगवत गीता-संत रामपाल जी द्वारा अनुवादित में कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा के अलावा अन्य देवी-देवताओं की पूजा-साधना मत करो, फिर हम क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे है। परमात्मा हमें मानव जन्म केवल सद्भक्ति करने के लिए प्रदान करते है। हमें हमारे वेदों पुराणों को पढ़ कर उन्हें समझ कर शास्त्रनुकूल भक्ति साधना करना ही हितकारी है। यदि हम ऐसा नहीं करते है तो परमात्मा से हमें जो सुख शांति मोक्ष मिलना चाहिए वह वह कैसे दे सकता है। 

शिवजी की पूजा से नहीं होगी मुक्ति, जाने प्रमाण श्रीमद्भगवद्गीता से

आइए आप को संक्षेप में बताते हैं –

  • पूर्ण परमात्मा की भक्ति कर प्राणी पूर्ण मुक्त (जन्म -मरण रहित) हो सकता है जो सतलोक में रहता है तथा प्रत्येक प्राणी के हृदय में भी और हर जीवात्मा के साथ वह ऐसे रहता है जैसे वायु रहती है गंध के साथ। भगवान ने अर्जुन को अपनी पूजा भी त्याग कर उस एक परमात्मा की शरण में जाने की सलाह दी है और कहा है कि मेरा पूज्य देव भी वही पूर्ण परमात्मा है। (18:62, 66 तथा 8:8-10, 20-22 में प्रमाण है)
  • यहाँ आपको बता दे कि जब स्वयं गीता का ज्ञान देने वाला भगवान कह रहा है कि केवल पूर्ण परमात्मा ही पूर्ण मोक्ष दे सकता है साथ ही खुद की पूजा को त्यागने को कह रहा और अपना आराध्य देव भी अन्य को बता रहा है जो कि  पूर्ण परमात्मा है, तो फिर विचार करिए कि यदि हम पूर्ण ब्रह्म को छोड़कर अन्य की पूजा अर्चना करें तो सुख, शांति या मोक्ष प्राप्त हो सकता है क्या?
  • ब्रह्मलोक से लेकर ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि के लोक और ये स्वयं भी जन्म मरण व प्रलय में हैं। इसलिए ये अविनाशी नहीं हैं। जिसके फलस्वरूप इनके उपासक (भक्त) भी जन्म मरण में ही हैं। (8:16, 9:7 में प्रमाण है)
  • सोचने वाली बात है कि हम जिनकी पूजा कर रहे हैं इतनी श्रद्धा भाव से वह खुद जन्म मरण में तो हमें कैसे मुक्ति प्रदान कर सकते हैं। यदि हम शिक्षित होते हुए भी अपने सद्ग्रन्थों को पढ़कर समझ नहीं पा रहे है तो हमारा शिक्षित होना भी व्यर्थ है। 
  • देवी देवताओं, तीनों गुण (रजोगुण ब्रह्मा,सतोगुण विष्णु और तमोगुण शिवजी) की पूजा करना तथा भूत पूजा, पितर पूजा (श्राद्ध निकालना) मूर्खों की पूजा – साधना है। इन्हें घोर नरक में डाला जाएगा। (7:12- 15; 20-23, 9:25 में प्रमाण है)
  • व्रत करना पाप है। जो शास्त्रानुसार यज्ञ हवन आदि (पूर्ण गुरु के माध्यम से) नहीं करते वे पापी और चोर प्राणी हैं। (6:16 व 3:12 में प्रमाण है)

समझदार को संकेत ही काफी है क्योंकि पूर्ण संत की शरण में जाए बिना आध्यात्मिक ज्ञान का होना संभव ही नहीं है। बिना तत्वज्ञान हुए पूर्ण परमात्मा की पहचान करना मुमकिन ही नहीं है। इसके बिना मोक्ष भी संभव नहीं है। स्वयं विचार करें कि जन्म मरण में रहना है या पूर्ण लाभ प्राप्त कर  परमात्मा का साक्षात्कार करना है। उपरोक्त प्रमाण सिद्ध करते है कि यदि हम मन मुखी पूजाएं करते है, शास्त्र अनुकूल भक्ति नहीं करते है तो न हमें मोक्ष मिलना, न अन्य लाभ मिलना है। आप स्वयं विचार करें और तत्वदर्शी संत जी की शरण में जाकर अपने जीवन का कल्याण करवाएं क्योंकि बिना तत्वदर्शी संत के पूर्ण मुक्ति नहीं हो सकती है।

सृष्टि के रचनाकार पूर्ण परमात्मा की  सत भक्ति साधना करनी चाहिए

ध्यान दें और स्वयं निर्णय करें कि पूरी सृष्टि के रचनाकार,  परम पूज्य भगवान, जिनकी भक्ति साधना करनी चाहिए, जो हमें सर्व सुख देकर पूर्ण मुक्त कर सकता है वह यह देवी- देवता या विश्वकर्मा जी नहीं बल्कि पूर्ण ब्रह्म है जिनका नाम हमारे वेदों पुराणों, श्रीमद्भागवत गीता जी में कविर्देव है। वेद पुराण साक्षी है जिनमें सर्व प्रमाण विद्यमान हैं।

कबीर साहेब जी कहते है :-

कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।

योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।   

साहेब कबीर समझा रहे है कि पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी ऋषि व साधक हठयोग करके हजारो वर्षों तक तप साधना करते रहते थे, अब कलयुग में मनुष्य की औसत आयु लगभग 75 -80 वर्ष रह गई, इतने कम समय में पूर्व वाली हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरु जी से नाम दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय सम्भाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग करलो। यदि कोई व्यक्ति चारो वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया। इसलिए जो सर्व का सृजनहार है, उस परम पूज्य परमात्मा की सद्भक्ति करके मानव जीवन का कल्याण करवाना ही हितकारी है।

मोक्षदायिनी सत भक्ति केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पास है

वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जो वास्तविक तत्वज्ञान करा कर पूर्ण परमात्मा की पूजा आराधना बताते है। समझदार को संकेत ही काफी होता है। वह पूर्ण परमात्मा ही है जो हमें धन वृद्धि कर सकता है, सुख शांति दे सकता है व रोग रहित कर मोक्ष दिला सकता है। सर्व सुख और मोक्ष केवल तत्वदर्शी संत की शरण में जाने से सम्भव है। तो सत्य को जाने और पहचान कर पूर्ण तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज से मंत्र नाम दीक्षा लेकर अपना जीवन कल्याण करवाएं। अधिक जानकारी के हेतु सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल पर सत्संग श्रवण करें,  जीने की राह पवित्र पुस्तक पढ़ें।  जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से मुफ्त नाम की दीक्षा लेने के लिए कृपया नीचे दिए गए फॉर्म को भरकर आज ही पंजीकरण करें। दुनिया की सबसे अधिक डाउनलोड की जाने वाली सबसे लोकप्रिय आध्यात्मिक पुस्तक जीने की राह है आप भी इसे जरूर पढ़ें।

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