कब है महाशिवरात्रि?

प्रतिवर्ष की तरह की तरह इस वर्ष महाशिवरात्रि हिंदी पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को है जो अंग्रेजी दिनदर्शिका (कैलेंडर) के अनुसार इस साल 8 मार्च को मनाया जा रहा है।

महाशिवरात्रि क्यों मनाते है?

अधिकांश समाधिस्थ रहने वाले देव, कामदेव को भस्म करने वाले एवं पार्वती को अमरमन्त्र सुनाने वाले तमोगुण प्रधान शिव जी शिवरात्रि के अवसर पर अनन्य रूप से पूजे जाते हैं। भक्तों द्वारा व्रत रखा जाता है और रात भर जागकर शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शिवजी का विवाह हुआ था। इस दिन लड़कियाँ शिव जैसा पति पाने की आकांक्षा के साथ व्रत रखती हैं। किंतु वास्तविकता यह है कि वेदों का सार कही जाने वाली श्रीमद्भगवत गीता में व्रतादि के लिए मना किया गया है। शिवलिंग पूजा, मूर्ति पूजा करना गलत शास्त्रविरूद्ध साधना है।

क्या शिव लिंग पूजा और व्रत रखना सही है?

कबीर साहेब कहते हैं- धरै शिव लिंगा बहु विधि रंगा, गाल बजावैं गहले | जे लिंग पूजें शिव साहिब मिले, तो पूजो क्यों ना खैले || अर्थात शिवलिंग पूजन से अच्छा तो बैल के लिंग की पूजा करना है जिससे गाय को गर्भ ठहरता है और फिर अमृत दूध उत्पन्न होता है जिससे दही, घी का निर्माण होता है। गीता अध्याय 6 श्लोक 16 में प्रमाण है कि योग न बहुत अधिक खाने वाले का और न बिल्कुल न खाने वाले का, न अधिक सोने वाले का और न बिल्कुल न सोने वाले का सफल होता है। योग केवल यथायोग्य सोने, उठने व जागने वाले का सफल है। हमने देखा कि गीता में व्रत आदि साधनाएं मना हैं, साथ ही मूर्तिपूजा भी कहीं वर्णित नहीं है। गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 में बताया है कि शास्त्रों में वर्णित विधि से अलग साधना जो करता है वह न सुख, न गति और न मोक्ष को प्राप्त होता है। विचारणीय है कि कौन पूर्ण परमेश्वर है जिसकी शरण मे स्वयं गीता ज्ञानदाता अर्जुन को जाने को अध्याय 18 के श्लोक 62 व 66 में कहता है। शास्त्रानुकूल भक्ति मोक्षदायक है इसके विपरीत मूर्तिपूजा, लिंगपूजा, तीर्थ, व्रत आदि शास्त्रविरुद्ध साधनाएं हैं।

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