अब्राहिम अधम सुल्तान को राजा से दास बनाकर सही भक्तिमार्ग पर लगाया कबीर जी ने।
अगर हम इतिहास उठाकर देखे तो जितने भी राजा महाराजाओं के जीवन चरित्र हमने पढ़े-सुने सभी ने ऐशो-आराम (मौज) युक्त जीवन बिताया है जबकि राजाओ का धन- धान्य से इतने परिपूर्ण होने की सिर्फ एक ही वजह हैं कि इन्होंने पूर्व के जन्मो में शास्त्र अनुकूल साधना अर्थात कबीर परमात्मा जी के निर्देश अनुसार सतभक्ति की थी जिससे इनके बहुत सारे पुण्य संग्रहित होते रहे। परमात्मा कबीर जी चारो युगों में अलग अलग नामो से प्रकट होकर उन अच्छी आत्माओ को मिलते है जिन्हें किसी जन्म में कबीर परमात्मा ने सतभक्ति प्रदान की थी लेकिन उस समय के नकली और ढोंगी संत महंतो द्वारा भ्रमित होकर गलत भक्ति मार्ग में प्रवृत्त हो जाते है और शास्त्र विरुद्ध साधना में लग जाते है।
ठीक वैसी ही एक आत्मा अब्राहिम अधम सुल्तान थी जो पूर्व के जन्मो में कबीर परमात्मा से नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति कर चुका था। जब कबीर जी काशी में प्रकट थे सम्मन वाली आत्मा उस समय पूर्ण मोक्ष नही पा सकी थी क्योंकि आर्थिक स्थिति कमजोर होने से मन मे धन की कसक बाकी रही थी क्योंकि उसने अपने बेटे के कहने पर उसका सिर काट दिया था जिसे कबीर परमेश्वर ने बाद में जिंदा कर दिया था। वह कई बार राजा बना क्योकि सतभक्ति से काफी पुण्य कमाई इकट्ठी हो जाती है लेकिन मन मे दोष रहने के कारण मुक्ति नही हो पाती। उसी के आधार पर अब वही सम्मन वाला जीव राजा अब्राहिम अधम सुल्तान इराक देश मे बलख नगर का राजा बना। उसके पास 18 लाख घोड़े थे। उसकी एक जोड़ी जूती के ऊपर अढ़ाई लाख के हीरे लगे थे। कबीर परमेश्वर जी सुल्तान को सतभक्ति पर लगाने के लिए अनेको लीलाये करते रहे ताकि उस पुण्यात्मा का मोक्ष हो सके।
कबीर परमेश्वर ने सुल्तान की कैद से छुड़ाया साधु संतों को।
पुराने भक्ति कमाई के कारण अब्राहिम अधम सुल्तान को परमात्मा की प्राप्ति हेतु प्रबल प्रेरणा थी तो उसने मंत्रियों से एक संत की तलाश करने को कहा। लेकिन एक ढोंगी बाबा के चक्कर मे आकर अब्राहिम सुल्तान ने धोका खाया और तब से ही साधु-संतों से उसका विश्वास भी उठ गया। क्रोधवश उस ढ़ोंगी बाबा को जेल में डाल दिया। वह अपने प्रांत के सभी सन्तो को बुलाकर उनसे एक ही प्रश्न करता कि यदि आपने खुदा को पाया है तो मुझे भी मिला दो। इसका उत्तर किसी के पास नहीं था। आखिर एक संत ने कहा कि जिस प्रकार दूध में घी हमेशा होता है पर वह दिखता नही है। उसको प्राप्त करने की एक विशिष्ट विधि है। वैसे ही मानव शरीर से परमात्मा प्राप्ति की विधि है। उस विधि से परमात्मा प्राप्त होता है। गुरू बनाओ, साधना करो। राजा के मन में गुरुओ के प्रति काफी घृणा थी। वह सब महात्माओं की यह परीक्षा लेकर उनको जेल में डाल देता था। सबसे चक्की चलवाता था।
जेल में दुःखी भक्तों की पुकार सुनकर उनको छुड़ाने के लिए तथा अपने परम भक्त सम्मन (अब्राहिम अधम सुल्तान) को काल के जाल से निकालने के लिए परमेश्वर कबीर जी एक भैंसे के ऊपर बैठकर सुल्तान अधम के राज दरबार में पहुँच गए। साधु वेश में परमेश्वर को देखकर अब्राहिम सुल्तान ने पूछा, आप किसलिए आए हो? परमेश्वर जी ने कहा कि आपके प्रश्न का उत्तर देने आया हूँ। अब्राहिम ने प्रश्न किया कि मुझे बताओ खुदा कैसा है? कबीर जी ने भैंसे से कहा कि बता दे भैंसा! अल्लाह कैसा है? कहाँ है? भैंसा मनुष्य की तरह बोला, कहा कि अब्राहिम मेरे ऊपर बैठा यह अल्लाहु अकबर है। सुल्तान को भैंसे को बोलते देखकर आश्चर्य हुआ, अचानक परमेश्वर कबीर जी भैंसे सहित अन्तर्ध्यान हो गये। यह देखकर अब्राहिम को चक्कर आ गया। उधर कबीर परमात्मा जेल के सामने जाकर खड़े हो गये ताकि सिपाही उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दे और ऐसा ही हुआ सिपाहीयो ने परमात्मा को जेल मे डाल दिया तथा उन्हें चक्की चलाने की सजा दी। कबीर परमेश्वर ने सर्व साधुओ को अपनी आंखें बंद करने को कहा और उन्होंने एक चक्की को डण्डा लगाया। उसी समय सब (360) चक्की अपने आप चलने लगी और जैसे ही दूसरे संतो ने आंखे खोली तो सभी साधु जेल से आजाद थे।
कुछ समय उपरांत कबीर परमेश्वर एक ग्रामीण यात्री की वेशभूषा में शाम के समय सुल्तान के महल मे आए और कहा की मैं एक यात्री हूँ, रात्रि में आपकी धर्मशाला (सराय) में रूकना है। एक रात का भाड़ा (किराया) बता, कितना लेगा। अब्राहिम अधम सुल्तान हँसा और कहा कि हे भोले मुसाफिर, यह सराय नहीं है। यह तो मेरा महल है। कबीर परमात्मा ने प्रश्न किया आपसे पहले इस महल में कौन रहता था? सुल्तान अब्राहिम अधम ने उत्तर दिया कि मेरे बाप-दादा आदि रहते थे। लेकिन अब वे तो अल्लाह को प्यारे हुए। परमात्मा ने प्रश्न किया कि आप कितने दिन इस महल में रहोगे। उत्तर के स्थान पर सुल्तान ने चिंतन किया और कहा कि मुझे भी मरना है। परमेश्वर ने कहा कि हे भोले प्राणी! यह सराय (धर्मशाला) नहीं तो क्या है? इतना कहकर परमात्मा गुप्त हो गए। सुल्तान को मूर्छा आ गई। बहुत देर में होश में आया।
कबीर जी की अनोखी लीला- अधम सुल्तान को जन्म-मरण के रोग से अवगत कराकर भक्तिबोध कराया
कुछ दिन बाद राजा जंगल मे शिकार पर गया। वहां परमेश्वर ने अपनी लीला से राजा को अन्य सेना से अलग कर दिया तथा राजा तथा घोड़े को बहुत देर तक कुछ पीने को नही मिला। जान जाने वाली थी। अल्लाह से जीवन रक्षार्थ जल की याचना की। अचानक एक जलाशय दिखा पानी की प्यास बुझाई और घोड़े को एक वृक्ष से बांध दिया। कबीर परमात्मा वहां एक जिन्दा बाबा के रुप मे बैठे थे और उनके पास तीन सुंदर कुत्ते बँधे थे। एक कुत्ते बाँधने की सांकल (चैन=लोहे की बेल) साथ में रखी थी। राजा ने कहा, हे फकीर जी! आप तीन कुत्तों का क्या करोगे? इनमें से दो मुझे दे दो। फकीर जी ने कहा, ये कुत्ते मैं किसी को नहीं दे सकता। इनको मैंने पाठ पढ़ाना है। ये तीनों बलख शहर के राजा के पिता,नाना और दादा है। मैं इनको समझाता था कि तुम अल्लाह को याद किया करो। इस संसार में सदा नहीं रहोगे। मरकर कुत्ते का जीवन प्राप्त करोगे। अभी तुम नान पुलाव-काजू-किशमिश, मनुखा दाख, खीर, हलवा, फल खा रहे हो। यह आपके पूर्व जन्मों के पुण्यों तथा भक्ति का फल मिला है। यदि इस मानव जीवन में भक्ति नहीं करोगे तो कुत्ते आदि के प्राणियों के जीवन में कष्ट उठाओगे। उन्होंने कहा कि ऐ घोड़े वाले भाई! यह जो खाली बेल रखी है, यह बताऊँ किसलिए है? जो बलख शहर का राजा अब्राहिम अधम है। वह भी संसार तथा राज्य की चकाचौंध में अँधा होकर अल्लाह को भूल गया है। अब उसको याद नहीं कि मरकर कुत्ता भी बनूंगा। उसको बहुत बार समझाया है कि भक्ति कर ले, इन महल रूपी सराय में सदा नहीं रहेगा, परंतु उसको खुदा का कोई खौफ नहीं है। उसको लाकर इस सांकल से बाँधूंगा। जिन्दा फकीर अर्थात कबीर जी के मुख से ये वचन सुनकर कुत्तों के रूप में अपने पूर्वजों की दुर्दशा देखकर अब्राहिम काँपने लगा और बोला कि हे फकीर जी! बलख शहर का राजा मैं ही हूँ। मुझे क्षमा करो। यह कहकर फकीर के चरणों में गिर गया। कुछ देर पश्चात् उठा तो देखा, वहाँ पर न जिन्दा बाबा था, न जलाशय, न बाग था, न कुत्ते थे। सुल्तान इसको स्वपन भी नहीं मान सकता था क्योंकि घोड़े के पैर अभी भी भीगे थे। कुछ फल तोड़कर रखे थे, वे भी सुरक्षित थे। सुल्तान को समझते देर नहीं लगी की यह पूर्ण परमात्मा थे और जीवन का मुल उद्देश्य समझाने आए थे।
अब्राहिम शिकार से लौटकर घर में एक कमरे में रोने लगा। उसे रोता देख रानिया उसे समझाने लगी कि आप एक पुरूष होकर औरत की तरह बाते करते हो। इतने में एक कुत्ता आया। उसके सिर में जख्म था। उसमें कीट (कीड़े) नोच रहे थे। कुत्ता बोला, हे अब्राहिम! मैं भी राजा था। जितने प्राणी शिकार में मारे तथा एक राजा के साथ युद्ध में जीव मारे, वे आज अपना बदला ले रहे हैं। मेरे सिर में कीड़े बनकर मुझे नोंच रहे हैं। मैं कुछ करने योग्य नहीं हूँ। यही दशा तेरी होगी। अपना भविष्य देख लो। तेरे पीछे-पीछे खुदा भटक रहा है। तू परिवार-राज्य मोह में अपना जीवन नष्ट कर रहा है। यह लीला भी स्वयं परमेश्वर कबीर जी ने की थी। यह अंतिम झटका था अब्राहिम को दलदल से निकालने का। इसके पश्चात् अब्राहिम अधम पृथ्वी का सुल्तान तो नहीं रहा, परंतु भक्ति का सुल्तान बन गया। सुल्तान ने रात के अंधेरे में अपना घर त्याग दिया। उसने महलो को छोड़कर जंगल मे आश्रय लिया। सुल्तान को परमेश्वर मिले और प्रथम मंत्र दिया और कहा कि बाद में तेरे को सतनाम, फिर सार शब्द दूंगा।
‘‘परमेश्वर कबीर जी द्वारा सुल्तान को सार शब्द कैसे प्राप्त हुआ?‘‘
वही परमेश्वर कबीर जी पास में एक आश्रम बनाकर रहने लगे। वे जिन्दा बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे। सुल्तान को प्रथम मंत्रा दीक्षा के कुछ महीनों के पश्चात् सतनाम की (दो अक्षर के मंत्र की) दीक्षा दी। सत्यनाम के पश्चात् योग्य होने पर सार शब्द साधक को दीक्षा में दिया जाता है। एक वर्ष के पश्चात् सुल्तान अधम ने अपने गुरू की कुटिया में जाकर सारनाम की दीक्षा के लिए विनम्र प्रार्थना की तो परमेश्वर जी ने कहा कि एक वर्ष के पश्चात् ठीक इसी दिन आना, सारनाम दूंगा। ठीक इसी तरह अनेको परिक्षाओ के बाद अब्राहिम अधम सुल्तान को कबीर परमेश्वर जी ने सारशब्द दिया और कहा, बेटा! आज तू दास बना है। अब तेरा मोक्ष निश्चित है।
वर्तमान मे आसानी से सार शब्द और सरलता से पूर्ण मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
इस समय वर्तमान मे पूरी पृथ्वी पर यह भक्ति विधि और सतनाम, सारनाम की सही विधि और सही मंत्र केवल संत रामपालजी महाराज के पास है और अन्य कही नहीे। यह वही सारनाम, सतनाम है जिसे प्राप्त करने के लिए अब्राहिम सुल्तान अधम को कई दिक्कतो का सामना करना पड़ा था आज वही सतनाम, सार नाम संत रामपाल जी महाराज द्वारा बिल्कुल निः शुल्क और सरलता से दिया जा रहा है।